मंगलवार, 5 फ़रवरी 2008

क्यों नहीं खेलेगी सानिया?


भारत की टेनिस सनसनी कही जानेवाली सानिया मिर्जा ने भारत में नहीं खेलने का ऐलान कर उन लोगों के मुंह पर तमाचा मारा है जो उसे बेमतलब के विवादों में घसीटकर अपनी दुकानदारी चला रहे थे।
ये वही लोग हैं जिनकी अपनी कोई खास पहचान नहीं। उन्हें सानिया की तंग ड्रेस से कोई मतलब नहीं, उन्हें तिरंगे के मान की भी चिंता नहीं। वे तो बस सानिया की पहचान पर कीचड़ उछालकर अपनी पहचान बनाना चाहते थे। अगर ऐसा नहीं होता तो सानिया की बजाय अपने घर और आसपास के लोगोंं पर अपने सड़े विचार लागू करते। लेकिन इस स्थिति मेंं उन्हें कोई पब्लिसिटी नहीं मिलती। सानिया के यहां नहीं खेलने से भी इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। योंकि ये लोग टेनिस के भी प्रेमी नहीं हैं योंकि उन्हें टेनिस की गेंद नहीं सानिया की टांगें दिखती हैं। फर्क उन्हें पड़ता है जो सानिया में एक राष्ट्रीय गर्व का अहसास करते हैं। उसकी हर झन्नाटेदार शाट और जीत पर जिनका सीना फूल जाता है। देश में बढ़ती गरीबी और अधिकतर मोर्चे पर पराजय के बीच जीत के जज्बे को सेलीब्रेट करते हैं। जो धर्म, मजहब और राजनीति से आगे बढ़कर हुनर को सलाम करते हैं, उन्हें सानिया के अपनी जमीन पर नहीं खेलने फर्क पड़ता है। फिर आप ही बताइए कि सानिया को इन लोगों के लिए योंं नहीं खेलना चाहिए?
दुखी सानिया ने कहा है कि वे किसी और विवाद से बचने के लिए बंगलुरू ओपन स्पर्धा से ही दूर रहेंगी। उन्होंने कहा कि मेरे मैनेजर ने मुझे भारत में नहीं खेलने की सलाह दी है। सानिया ने अफसोस जताया कि वे जब-जब भारत में खेली हैं, उन्हें किसी न किसी परेशानी का सामना करना पड़ा। इसलिए इस बार हमने न खेलना ही ठीक समझा। कभी कट्टरपंथियों ने टेनिस कोर्ट पर पहने जाने वाली पोशाक पर आपत्ति जताई तो हाल ही उन पर पिछले दिसंबर में हॉपमैन कप के दौरान राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे का अपमान करने का आरोप लगा और उनके खिलाफ देश की कुछ अदालतों में मुकदमे भी दायर किए गए। कोर्ट से बाहर के इन बवालों से सानिया इतनी दुखी थीं कि एक बार तो उन्होंने टेनिस को ही छोड़ने का इरादा कर लिया था।