बुधवार, 11 दिसंबर 2013

केजरीवाल फैक्टर का दूसरा पहलू भी है

-मृत्युंजय कुमार
द‌िल्ली का चुनाव पर‌िणाम कांग्रेस के ख‌िलाफ जनता का व‌िभाज‌ित मत है और इसमें भाजपा के बड़े दल के रूप में उभरने के बावजूद केजरीवाल और आप की उपस्थ‌ित‌ि चौंका रही है। इसका ‌देश के सभी दल और बुद्ध‌िजीवी ‌आपमुग्ध होकर व‌िश्लेषण करने में लगे हैं। इसमें कई महत्वपूर्ण ब‌िंदु पीछे छूट रहे हैं या ‌फ‌िर जान बूझकर पीछे छोड़े जा रहे हैं। आप को सफलता क्यों म‌िली? क‌ितनी म‌िली और अब आगे क्या होगा? यही सवाल हैं ज‌िस पर टीवीछाप बुद्ध‌िजीवी और पत्रकार कुकुहार मचाए हुए हैं। धारा के व‌िपरीत देखने की ह‌िम्मत करें तो कुछ और भी द‌िखता है।

सच है क‌ि अरव‌िंद केजरीवाल इस चुनाव पर‌िणाम से पारंपर‌िक राजनी‌ति करनेवाले दलों में सुधार के ल‌िए दबाव फैक्टर के रूप में काम रहे हैं पर ये भी सच है क‌ि वे राजनीत‌ि का कोई अद्भुत आदर्श नहीं कायम कर रहे। न तो व‌ैचार‌िक रूप से और न ही व्यावहार‌िक रूप से। वे महज द‌िल्ली में मौजूद व‌िकल्पों औ्रर वैचार‌िक खालीपन से म‌िले अवसर की उपज हैं। ब‌ल्क‌ि वे इस अवसर का पूरा उपयोग भी नहीं कर सके, अन्यथा भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में नहीं उभरती।

‌व‌िचारधारा के तौर पर वह कहीं स्टैंड लेते नहीं द‌िखते। उनका घोषणापत्र कहीं भी दूरगामी नहीं द‌िखता। उनकी सोच ब‌िजली पानी और तात्काल‌िक राहत वाले लोकलुभावन मुद्दों से आगे नहीं जाती द‌िखती। इनके नेता और कार्यकर्ता वैचार‌िक रूप से प्रश‌िक्ष‌ित भी नहीं है, ज‌िससे भव‌िष्य में उनके व‌िचलन की आशंका भी अध‌िक है। वामदलों के एजेंडे उनसे कहीं दूरगामी और जनोन्मुखी द‌िखते हैं और कई राज्यों में उसका असर भी द‌िखा है।

व्यावहार‌िक तौर पर भी केजरीवाल और उनके साथी अभी तक त्याग की कोई बड़ी छव‌ि नहीं प्रस्तुत कर सके हैं। भले ही उन्होंने इनकम टैक्स की नौकरी छोड़ी हो पर जीवनचर्या अभी भी उच्च मध्यवर्गीय ही है। इनके प्रत‌िन‌िध‌ि प्रेम के हाईपेड कव‌ि हैं, ब‌िजनेस क्लास से कम में सफर नहीं करते और होटलों में सुइट से कम में नहीं रुकते और अपने अलावा सभी बेइमान और बुद्दू समझतेहैं। इसकी तुलना आप वामदलों से नहीं कर सकते, ज‌िनके जन प्रत‌िनिध‌ियों को म‌िलने वाला वेतन भी संगठन ले लेता था और उन्हें खर्चे के ल‌िए पैसा म‌िलता था। द‌िल्ली में हमने खुद कई वाम सांसदों के आवास को देखा था, जहां सांसद के एक कक्ष को छोड़कर पूरे घर में कार्यकर्ताओं का कब्जा होता था। कई बार सांसद रहे रामावतार शास्त्री जैसे नेता फर‌ियादी की साइक‌िल पर बैठकर पैरवी करने जाते थे। न तो इनकी तुलना दक्ष‌िणपंथी संघ के पूर्णकाल‌िक पदाध‌िकार‌ियों से की जा सकती है जो व‌िचारधारा के ‌ल‌िए जीवन समर्प‌ित करते हुए ब‌िना पद की लालसा के चुपचाप काम करते रहते हैं। इनकी तुलना सरल-सहज अन्ना से भी नहीं की जा सकती जो खाने की एक प्लेट और पहनने के दो जोड़ी कपड़े के आधार पर ही व्यवस्था को बदलने का संघर्ष कर रहे हैं।

द‌िल्ली में ब्रांड केजरीवाल की सफलता के कारणों पर नजर डालें। केजरीवाल ने वही एप्रोच अपनाई जो धुर वाम और समाजवादी अपनाते थे। ताकतवर के ख‌िलाफ मुखर होना, डोर टू डोर का नेटवर्क बनाना। इसे आप जार्ज फर्नांडीस जैसे नेता में पहले देख सकते हैं। द‌िल्ली में इसी मुखर वाम और समाजवादी आधार का खत्म होना या कमजोर पड़ना केजरीवाल और आप को जगह दे गया। यह भाजपा से ज्यादा वामपंथी संगठनों के ल‌िए खतरे की घंटी है। इसका यह भी मतलब है क‌ि जहां ये धाराएं अभी भी मजबूत हैं वहां केजरीवाल प्रभाव नहीं डाल पाएंगे। दूसरा कारण मीड‌िया नेटवर्क‌िंग होना। केजरीवाल की टीम में मीड‌ियाकर्म‌ियों की भरमार है। मनीष स‌िसौद‌िया, शाज‌िया, व‌िधायक राखी ब‌िड़ला, जागरण के पूर्व पत्रकार च‌िदंबरम पर जूता फेंकनेवाले जनरैल स‌िंह आद‌ि। परदे के आगे, परदे की पीछे सक्र‌िय इस टीम के कारण कई बार इलेक्ट्रान‌िक मीड‌िया कई बार हद पार करते हुए आप के ल‌िए माहौल बनाते द‌िखी। यह पक्षपात यहां तक द‌िखता था क‌ि केजरीवाल के साथ‌ियों पर सवाल उठानेवालों को एंकर और व‌िश्लेषक डांटने लगते थे और केजरीवाल के कुमार व‌िश्वास और संजय स‌िंह जैसे प्रत‌िन‌िध‌ि उदंड की तरह शोर मचाने लगते।

सरकार न बनाने से पीछे हटकर ये जनता से बेइमानी भी कर रहे। भाजपा को कोई समर्थन देने को तैयार नहीं है, इसल‌िए उसका पीछे हटना स्वाभाव‌िक है। पर कांग्रेस के खुले प्रस्ताव के बावजूद सरकार बनाने से पीछे हटना बताता है क‌ि इनके ल‌िए जनता से क‌िए वादे बढ़कर राजनीत‌िक महत्वाकांक्षा है। इनकी महत्वाकांक्षा द‌िल्ली से बढकर देश तक पहुंच गई है, ज‌िसके कारण अपने वोटरों की आकांक्षाओं की ये हत्या करने में जुटे हैं। कही एेसा न हो दुबारा चुनाव इन्हें और पीछे न खड़ा कर दे। पहले रामव‌िलास पासवान ब‌िहार में एेसा जोख‌िम लेकर २९ व‌िधायकों से १० पर चले गए थे। भाजपा, आप और कांग्रेस को म‌िले मतों में ज्यादा अंतर नहीं है। पहले क‌िसी को आप से एेसे प्रदर्शन की उम्मीद नहीं थी। इस बार व‌िरोधी आप की ताकत से वाक‌िफ हैं, इसल‌िए रणनीत‌ि उस ह‌िसाब से बनाएंगे तो शायद ये और पीछे भी जा सकते हैं। फ‌िर देश की महत्वाकांक्षा का क्या होगा? साथ चुनाव में ये द‌िल्ली बचाएंगे या देश में जाएंगे? ये स्थ‌ित‌ि भाजपा के ज्यादा अनुकूल होगी।

आप की उपल‌ब्ध‌ियों में ग‌िनाई जा रही है क‌ि इसने चुनाव में जात‌ि को तोड़ा है। पहले भी द‌िल्ली में जात‌ि का फैक्टर मजबूत नहीं रहा है, अलग अलग ह‌िस्सों से आए लोग ब‌िजली पानी जैसी रोजमर्रा कीसमस्याओं से जूझते रहे हैं। द‌िल्ली के ज‌िन क्षेत्रों में जात‌ि धर्म के आधार पर ‌ट‌िकट बंटते रहे हैं, वहां आप ने भी उसी आधार पर ट‌िकट द‌िए थे। स‌िख बहुल इलाकों से स‌िख को, मुसल‌िम बहुल इलाकों में मुसल‌िम को और जाट बहुल इलाकों में जाट को ट‌िकट द‌िए। ये उपल‌ब्ध‌ि भी बताई जा रही है क‌ि झाडू की हवा में एेसे लोग भी जीत गए ज‌िन्हें कोई नहीं जानता था। यह पहली बार नहीं हुआ है। क्षेत्रीय दलों के उभार में एेसा अक्सर होता है। ब‌िहार में जब लालू यादव का उभार हुआ तो सड़क पर पत्थर तोड़नेवाली मजदूर भगवती देवी भी व‌िधायक बन गई थी। आज चाय बेचनेवाले मोदी भी प्रधानमंत्री पद के सबसे बड़े दावेदार हैं। यही इस लोकतंत्र की खास‌ियत भी है।