ब्लाग की दुनिया भी अजीब है। तमाम उतार-चढ़ाव, बंधनों के बावजूद इसके रास्ते इतने सपाट दिखते हैं कि मीलों दूर बैठा आदमी अपने असली चेहरे के साथ साफ साफ दिख ही जाता है। उतार चढ़ाव इसलिए क्योकि कुछ साथी तकनीकी लाभ लेते हुए अपनी पहचान को छिपाते हुए बेबाक बात रखते हैं। शायद व्यावसायिक, सामाजिक मजबूरियां उन्हें अपनी पहचान छिपाने के लिए विवश कर देती हैं। इसके बावजूद खास बात यह है कि व्यक्ति ब्लाग पर अपनी बात, अपने विचार जिस बेबाकी से रखता है उससे उसका सही चेहरा ही सामने आता है। तकनीकी नकाब भी किसी ब्लागिए को बहुत देर तक छिपाकर नहीं रख सकती। ब्लागखोरी करते-करते मुझे भी कई पुराने दूर बैठे, प्रकट और छद्म नामों से विचरण करते पुराने परिचितों से टकराने का सौभाग्य मिला। परिचितों से मिलकर, उनके बारे में जानकर, उनकी खैर खबर पाकर अच्छा लगता है। मुझे भी लगा। आपको भी अच्छा लगता होगा। कुछ लोगों के लिए पुनर्मुलाकात कटु हो सकती है, बशर्ते पुराना अनुभव कड़वा रहा हो। वैसे ब्लागखोरी करते हुए आपको कोई ऐसा अनुभव हुआ हो बेबाक पर सभी से शेयर कर सकते हैं। क्या पता ब्लाग की इन गलियों में फिर कोई परिचय की खिड़की खुल जाए।
रविवार, 16 दिसंबर 2007
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1 टिप्पणी:
बेबाक बात कहने का जो आनन्द आमने सामने आता है अभी तक हम ब्लॉग जगत में सहज नहीं हो पा रहे... बहुत पढ़ते हैं और जितना पढ़ते हैं अपने आप को उतना ही असहाय पाते हैं बेबाक होने में... शायद नए साल के नक्षत्र हमारे पक्ष में हों... नव वर्ष की शुभकामनाएँ
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