पेट ही नरक है
पेट ही स्वर्ग है
सड़क के किनारे
लालबत्ती इलाके में
छज्जे पर खड़ी होकर
लगाती आवाजें
करती अजीब इशारे
इस उम्मीद में
कि ये इशारा जगा देगा
सामने गुजर रहे लोगों में
एक भेड़िया
और भर जाएगी पेट।
वह लंबी कार से उतरती है
डकार लेती है
पिज्जा, बर्गर और पनीर के
मिले-जुले स्वाद के साथ
उसे हरियाली अच्छी लगती है
हवा भी सुहानी
दुख लगता है अर्थहीन
और जिंदगी का हर
मोड़ नजर आता है हसीन
पेट की धाह से
दूर भागते हैं देवता भी
झुलस जाती है
संवेदनाएं
मर जाती हैं इच्छाएं
जीने की
आसमान छूने की।
-मृत्युंजय कुमार
सोमवार, 10 दिसंबर 2007
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
2 टिप्पणियां:
पेट की धाह से
दूर भागते हैं देवता भी
झुलस जाती है
संवेदनाएं
मर जाती हैं इच्छाएं
जीने की
आसमान छूने की।
इन्हीं इच्छाओं को जीवित रखना है मृत्युंजय जी
एक टिप्पणी भेजें